रथयात्रा: पुरी शंकराचार्य के प्रथम दर्शन से हुई शुरुआत

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी। विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी रथयात्रा की पुरी शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज ने परंपरा अनुसार प्रथम दर्शन कर शुरुआत की तत्पश्चात गजपति महाराज जी ने सोने की झाड़ू से रास्ता बुहारकर रथ को आगे बढ़ाने की शुरुआत किया। इस संबंध में इतिहास है कि शिवावतार भगवत्पाद आदि शंकराचार्य महाभाग ने आज से 24 सदी पूर्व जगन्नाथ मंदिर में भगवान के विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित कर साथ ही चार आम्नाय पीठों में से एक पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ में अपने प्रमुख शिष्य पद्माचार्य जी को इस पीठ के प्रथम शंकराचार्य के रूप में अपने करकमलों से अभिषिक्त किया था , तब से श्रीजगन्नाथ मंदिर में पुरी शंकराचार्य जी की विशेष महत्ता है तथा उनका मंदिर में प्रवेश एक विशेष द्वार से होता है । रथारूढ़ भगवान के विग्रह स्पर्श संबंधी नियम एवं अधिकार के संबंध में पुरी शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा निर्धारित नियमावली को न्यायालय ने यह उद्घृत करते हुये स्वीकार किया कि धार्मिक क्षेत्र में शंकराचार्य जी सर्वोच्च न्यायाधीश हैं तथा उनके द्वारा प्रदत्त नियमों को अक्षरशः स्वीकार किया जाता है तथा राज्य शासन इसका परिपालन सुनिश्चित करे। आज रथयात्रा में
देव प्रतिमाओं को रथों में स्थापित करने के बाद पुरी के राजा गजपति महाराजा दिव्य सिंह देव ने सोने की झाड़ू से रथों को बुहारने की परंपरा को निभाया। इसके बाद गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने देव प्रतिमाओं का दर्शन किया और फिर रथों को खींचा गया।ढोल, मंजीरे और शंख की ध्वनि तथा ‘हरि बोल’ के उद्घोष के साथ भगवान जगन्नाथ , बलभद्र और देवी सुभद्रा की वार्षिक रथयात्रा को शुरुआत हुई। बारहवीं शताब्दी के मंदिर के इतिहास में लगातार दूसरे साल और दूसरी बार ऐसा हुआ जब रथयात्रा में आमजन शामिल नहीं हो सके।
गौरतलब है कि वैश्विक महामारी कोरोना संकटकाल के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार रथयात्रा केवल पुरी में सीमित दायरे में निकाली गई। कोर्ट ने कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट और तीसरी लहर की आशंका को देखते हुये ओडिशा सरकार के फैसले को सही ठहराते हुये पूरे राज्य में रथयात्रा को निकालने पर पाबंदी लगा दी है। ऐसे में पिछले साल की तरह इस साल भी रथयात्रा के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पूरा पालन किया गया , सिर्फ मंदिर परिसर से जुड़े लोग और कुछ अन्य लोगों को शामिल होने की इजाजत है। जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से आरंभ होकर दशमी तिथि को समाप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं , जहां भगवान सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनायी जाती है। यात्रा के पहले ही जिला प्रशासन ने रविवार रात आठ बजे से दो दिन के लिये कर्फ्यू लागू कर दिया है। लोगों को घर और होटल की छत से भी रथयात्रा के कार्यक्रम को देखने की अनुमति नही दी गई। रथयात्रा के मौके पर ओड़िशा के सीएमने लोगों से टीवी पर रथयात्रा का लाइव प्रसारण देखने की अपील की थी। प्रशासन ने श्री जगन्नाथ मंदिर से श्री गुंडिचा मंदिर के बीच तीन किलोमीटर लंबे ग्रांड रोड पर प्रतिबंध लागू किया था जहां चिकित्सा आपातकाल के अलावा अन्य सभी गतिविधियों पर रोक लगी थी। इस वार्षिक धार्मिक आयोजन के सहज संचालन के लिये कम से कम 65 दस्तों की तैनाती की गई थी , प्रत्येक दस्ते में 30 जवान शामिल रहे। वहीं केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपने परिवार सहित अहमदाबाद में रथयात्रा से पहले सुबह चार बजे मंगला आरती में शामिल हुये और हाथियों को फल खिलाया। रथयात्रा के दौरान मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने की झाड़ू से सफाई की।अहमदाबाद के जिस रूट से यात्रा निकली वहां पर भी कर्फ्यू लगा दिया गया था।  

राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री ने दी शुभकामनायें

रथयात्रा के पावन अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों , विशेष रूप से ओड़िशा में सभी श्रद्धालुओं को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें। मैं कामना करता हूँ कि प्रभु जगन्नाथ के आशीर्वाद से सभी देशवासियों का जीवन सुख ,समृद्धि और स्वास्थ्य से परिपूर्ण बना रहे। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट किया और लिखा कि रथयात्रा के विशेष अवसर पर सभी को बधाई। हम भगवान जगन्नाथ को नमन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनका आशीर्वाद सभी के जीवन में अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि लाये , जय जगन्नाथ।

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