छत्तीसगढ़: जनप्रतिनिधियों की प्रतिनिधि नियुक्ति कारोबार में क्या ननकीराम की नसीहत से सभी लेंगे सीख ?

विधायक ननकीराम कंवर ने अपने सभी विधायक प्रतिनिधियों को हटाया
★ वाहनो में नेमप्लेट बनता जा रहा स्टेटस सिंबल
★ रुतबा दिखाने की होड़ में हर कोई आगे आने लगा है
★ नियम-कायदे ताक पर रखने वालों में अधिकारी से लेकर राजनीति के कई ‘खिलाड़ी’ भी हैं शामिल

बिलासपुर। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यदि किसी को अवसर मिला विधायक, सांसद या छोटे से जनप्रतिनिधियों के रूप में तो मानो आजकल समर्थक, कार्यकर्ता, रिश्तेदारों सहित दूरदराज के भी संपर्क पहुंच के लोग हैसियत रहे अथवा न रहे आसान किश्तों में चारपहिया वाहन उसके बाद सबसे पहले नेम प्लेट की दुकान पहुंच ….प्रतिनिधि का बोर्ड लगा दिया जाता है। बीते कुछ सालों से यह परंपरा इतने ज्यादा उफान पर देखी गई कि कई मामले मुकदमे के बाद जनप्रतिनिधियों को पता चलता था कि अमुख वाहन वाला उनके प्रतिनिधित्व के सहारे अपनी दुकानदारी चलाते अपराध जन्य काम किया। बावजूद यह बदस्तूर जारी रहा। मगर कुछ जनप्रतिनिधियों में देखा जाता है स्वाभिमान, आत्मसम्मान और शर्म जिसके चलते वे इन परंपरा से अपने को किनारे रखना उचित समझते है।

बहुत से अवसर आये जब जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधियों के किस्से चुट्कुले भी बनते रहे कभी कभी इन नेम प्लेट के कारण आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने जैसी बातें हुईं। और बहुत से समय प्रतिनिधियों को स्वयं नेता जी के द्वारा क्लीन चिट दे दिए जाने के चलते बवाल की स्थिति भी बनी। अपने वाहनो अथवा लेटरहेड में फलाना का प्रतिनिधित्व मिलने लिखाने के बाद मानो नेता जी से अधिक उस अदने से प्रतिनिधि को छूट मिली हो जिसके बाद रंगदारी, वसुलीबाजी, अतिक्रमण, धौंस,नाको अथवा बेरियर में नंगाई आम बात होती रही है। इन सबके लिए कहीं न कहीं नेता जी लोगो की किरकिरी होती है मगर क्या करे चुनाव फिर पांच सालों में आने है और इन्ही …प्रतिनिधियों के सहारे वैतरणी पार लगानी है जो हो रहा चलने दो जैसे हालात में छत्तीसगढ़ के एकमात्र विधायक ननकीराम कंवर को ऐसी जानकारी मिली कि जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि बनाना ठीक नहीं अथवा ये कहें गैरवाजिब है तब उन्होंने एक आदेश जारी कर अपने सारे प्रतिनिधियों को निकाल बाहर (हटा) करने के बाद बाकायदा इसकी सूचना प्रशासनिक रूप से भेजी ताकि भविष्य में उनके नाम,पद का किसी तरह रंगदारी अथवा कोई भी काम मे गैर वाजिब ढंग से उपयोग न हो। भले ही यह निर्णय किसी जनप्रतिनिधियों के लिए थोड़ा कठिन हो मगर आम जनता और अधिकारी, कर्मचारियों को बड़ा राहत देने वाला माना जायेगा। जिससे नेता जी की आड़ में अवैध कामो,रंगदारी, वसुलीबाजी या और भी बहुत सारे अपराध जन्य काम मे अंकुश लगेगी।

क्या सभी जनप्रतिनिधि ऐसा ही करेंगे ?

वरिष्ठ आदिवासी नेता और भाजपा विधायक ननकी राम कंवर ने जो किया वैसा ही अगर जनता के चुने हुए सभी प्रतिनिधि करेंगे तो शायद आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ में किसी भी वाहन में विधायक प्रतिनिधि या सांसद प्रतिनिधि के बोर्ड की दफ़्ती लगाकर दूसरे नेता घूमते नजर नहीं आएंगे। कोरबा जिले के रामपुर क्षेत्र के भाजपा विधायक और प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री ननकीराम कंवर को जैसे ही पता चला कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को अलग से अपना प्रतिनिधि रखने का कोई प्रावधान नहीं है, उन्होंने विभिन्न बैठकों में शामिल होने के लिए नियुक्त किए गए अपने 06 प्रतिनिधयों को तत्काल हटा दिया। उन्होंने इस आशय की सूचना को संबंधित अधिकारियों को भेज भी दिया है।

लाल प्लेट के शौक से हर कोई बनना चाहता है रुतबेदार

गाड़ी पर लाल प्लेट अब स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। कुछ रुतबा दिखाने की होड़ में हर कोई आगे आने लगा है।

अधिकारियों के साथ जनप्रतिनिधि भी वाहनों पर बड़े-बड़े अक्षरों में सरपंच, पार्षद, अध्यक्ष जैसे पदनाम लिखवाने में अपनी शान समझ रहे हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही। विभागीय नियमों के अनुसार किसी भी वाहन पर नम्बर प्लेट पर लाल रंग की पट्टी नहीं लगवा सकते है और ना ही पद नाम लिखवाा सकते हैं। इसके बावजूद सरकारी के साथ निजी वाहनों पर भी नम्बर प्लेट पर लाल रंग की पट्टी व पद नाम लिखे वाहन सरपट दौड़ते नजर आ रहे हैं।

यह है नियम व आदेश

परिवहन विभाग के अनुसार वाहनों पर लाल पट्टी व नेम प्लेट लगाने का अधिकार किसी को नहीं है। परिवहन अधिकारी कार्यालय से दिए गए जवाब में जानकारी दी गई है कि नियमानुसार लाल पट्टी व प्लेट लगाने का अधिकार किसी को नहीं है। उधर, केंद्रीय मोटर वाहन नियमावली 1989 की धारा 108 (3) में लाल-पीली बत्ती लगानेवाले की सूची जारी कर इन्हें गाड़ी के आगे लाल-पीली बत्ती का प्रयोग करने के लिए अधिकृत किया गया है। इन वाहनों पर अति विशिष्ट व्यक्तियों या पदाधिकारियों के पदनाम और उससे नीचे संबंधित सरकार का नाम लिखने की अनुमति दी गई है।

फैशन बना

शहर में वाहनों पर नेम प्लेट लगाने का फैशन बन गया है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं में से लेकर जनप्रतिनिधियों में भी नेमप्लेट लगाने को लेकर होड़ लगी है। सभी वाहनों पर अपने पद नाम का बोर्ड लगा कर खुलेआम मोटर वाहन नियमावली के नियमों की अवहेलना कर रहे हैं। वाहनों पर बोर्ड लगाकर चलना स्टेटस सिंबल बन गया है। शहर में सैकड़ों गाडिय़ों पर लोगों का पद नाम नजर आ जाएगा। यहां तक कि एनजीओ चलाने वाले लोगों ने भी अपने वाहनों पर बड़े-बड़े अक्षरों में नाम लिखवाए हैं। इसके बावजूद कार्रवाई नहीं होती।

कार्रवाई का प्रावधान, करे कौन ?

जिला परिवहन अधिकारी, पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर यातायात पुलिस अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे वाहनों की जांच कर सकते हैं। जिन निजी वाहन संचालकों द्वारा अपने वाहनों पर अनाधिकृत लाल पट्टी, अनाधिकृत लाल नेम प्लेट लगाई हुई है। उनके विरूद्ध एमवी एक्ट के तहत कठोर कार्रवाई की जा सकती है। जिन वाहनों की नम्बर प्लेट एमवी एक्ट के नियमानुसार नहीं लगी होती है। उन वाहन चालकों के विरूद्ध भी एमवी एक्ट के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती।

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