विधानसभा चुनाव में परिवर्तन की मांग मुखर जनता की ओर से उठी मांग,जांजगीर-चाम्पा में PCC सचिव राघवेंद्र पाण्डेय पर लगाए कांग्रेस दांव, जिले में शून्यता से उबरने की बनेगी राह ।

जांजगीर-चाम्पा. स्थापना के 26 वें वर्ष में एक बार विभाजित हो चुके जांजगीर चाम्पा जिले के लोगों ने जिस उम्मीद से पृथक जिले की लड़ाई लड़ी वह पूरी होते नहीं दिख रही है। नेतृत्व की उदासीनता इसकी बड़ी वजह रही है। विधानसभा चुनाव की बेला में जनता के बीच से नए नेतृत्व को मौका देने की मांग उभर रही है। न केवल बदलाव बल्कि ये बदलाव जनता के बीच से हो ये जरूरी है। इसे लेकर मंथन जरूरी दिख रहा है। युवा पीढ़ी की ओर से अप्रत्याशित रुप से समाजसेवी एवं  नवनियुक्त पीसीसी सचिव राघवेंद्र पाण्डेय  का नाम सामने आ रहा है,जिन्हें विधानसभा  चुनाव में उम्मीदवार के रुप में देखा जा रहा है। हालांकि उन्होंने साफ कहा है कि मेरा सपना  विधायक बनना नहीं,मेरा मकसद है जांजगीर-चांपा की तस्वीर बदलना है। मुझे चुनाव लड़ने की जवाबदारी दी जाए तो जनता की आवाज बनकर मैदान में रहूंगा।

 जनसरोकार के  मुद्दों  पर 28 वर्षो से मुखर हैं पाण्डेयउन्होंने अपने आंदोलनों व जन सरोकारों के मुद्दे पर बताया कि वर्ष 1995 के जर्जर सड़को के निर्माण की मांग को लेकर छात्र महा चक्काजाम आज भी चर्चा का विषय है। इस आंदोलन के बाद नेताओं के इशारे पर मेरे खिलाफ झुठा अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था, परीक्षा के दौरान मुझे गिरफ्तार करने का प्रयास किया गया था। पांच साल बाद न्यायलय से दोषमुक्त होने के बाद मैने शहर के हक में संघर्ष करना शुरु कर दिया था जो आज तक जारी है।

जिला चिकित्सालय की स्थापना की मांग को लेकर वर्ष 2000 में सर्वदलीय मोर्चा के बेनर तले हम शहर के आम लोगों ने 13 घंटे तक का सफल चक्काजाम किया था। वर्ष 2007 में जिला चिकित्सालय के लोकार्पण के लिए हम आम लोगों ने ही शासन-प्रशासन को मजबूर किया था तथा स्थानीय मुद्दों को लेकर इसी वर्ष एक बार फिर और तीसरी बार मैंने चक्का जाम का नेतृत्व किया था। इस आंदोलन के दौरान सड़क पर तत्कालीन अपर कलेक्टर सुकुमार चांद  और मैं आमने-सामने थे शहर की एकजुटता के सामने प्रशासन  बेबस थी। बिजली की समस्या को लेकर अधीक्षण यंत्री जांजगीर-चांपा के कार्यालय में भी ताला ठोका था और अधिकारियों को बंधक बनाया था लिखित में शर्त मानने पर ताला खुला था तथा एक सप्ताह में ही हम लोगों ने 19 गांव में बंद पड़े  ट्रांसफार्मर को बदलवाया था। शहर में अंग्रेजी शराब दुकान को हटाने आबकारी आयुक्त को राजधानी से जांजगीर-चांपा आना पड़ा था। स्थानीय समस्याओं को लेकर जब हम  आम लोग नगर पालिका पहुंचा थे तो सीएमओ को चेंबर छोड़कर भागना पड़ा था उनके  स्थान पर कलेक्ट्रेट छोड़कर अपर कलेक्टर को नगर पालिका आना पड़ा था।

कब तक करेंगें संघर्ष, निर्णायक लड़ाई जरूरीउनका कहना है कि अगर इच्छा शक्ति हो तो जांजगीर-चाम्पा को देश का टाप वन जिला बनाया जा सकता है।  अफसोस जांजगीर-चांपा में आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जनता को सड़क पर संघर्ष करना पड़ता है ।आखिर कब तक हम अपने हक के लिए सड़क पर संघर्ष करते रहेंगे।

समाजसेवा के क्षेत्र में मिली है, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति

वे आंचल के ख्याति प्राप्त समाजसेवी एवं  अविभाजित मध्यप्रदेश शासन द्वारा कृषि रन से से सम्मानित स्व. रामसरकार पाण्डेय के पुत्र हैं अपने पिता की तरह वे भी छात्र जीवन से समाज सेवा से जुड़े हैं कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों को अच्छी शिक्षा सुविधा मिल सके इस दिशा में उनके योगदान के लिए उन्हें सम्मानित करने सात समुंदर पार अमेरिका भी आमंत्रित किया गया है ।

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