चुनाव के लिए अधिग्रहित वाहनों से भी बदतर है स्थिति

गरियाबंद. 250 किमी का सफर, 8 घंटे की ट्रेनिंग और खाने के नाम पर सिर्फ एक प्लेट पोहा और एक कप चाय! कर्मचारी बोले कि निर्जीव वाहन की तरह हमारा भी अधिग्रहण कर लिया गया है. वहीं अफसरों का तर्क अतरिक्त बजट का प्रावधान ही नहीं है. गरियाबंद में चुनाव में संलग्न कर्मचारियों के प्रशिक्षण का हाल बता रहे हैं लल्लूराम संवाददाता पुरुषोत्तम पात्र.चुनाव सम्पन्न कराने आयोग का सख्त रवैया निष्पक्षता के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन चुनाव में दिन-रात एक करने वाले कर्मियों की जरूरतों को नजरअंदाज करना उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करेगा. ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि दूरदराज ब्लॉक से चुनाव की ट्रेनिंग लेने पहुंच रहे कर्मियों के लिए आयोग के मद में भोजन पानी का कोई प्रावधान ही नहीं है.जिला मुख्यालय के विभिन्न भवनों में एक शिफ्ट में 1500 से ज्यादा कर्मी प्रशिक्षण लेने पहुंच रहे हैं. सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में उन्हें सुबह 30 एमएल चाय और फिर लंच के समय लगभग ढाई तीन बजे के बीच 100 ग्राम पोहा दिया जा रहा है.

सख्ती इतनी की उन्हें ट्रेनिंग छोड़ अपने पैसे से भोजन के लिए बाहर जाने तक का समय नहीं दिया जाता. लघु शंका भी आई तो उन्हें रोकना पड़ रहा है. सीमित बजट के बीच चल रहे इस प्रशिक्षण से कर्मचारी हैरान-परेशान हैं, लेकिन वे खुलकर सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. लेकिन एक वायरल तस्वीर की सच्चाई जानने कर्मियो से संपर्क किया गया तो उनका दर्द छलकते दिखा.कर्मियों ने नाम-पता जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि उन्हें आयोग ने उस निर्जीव वाहन की तरह अधिग्रहण कर लिया है, जिसे जब चाहे तब चलाया जाता है. वाहनों में पर्याप्त डीजल का भी प्रावधान है, पर यहां मानव मूल्यों को मशीन से कम आंक दिया गया है.

आने-जाने का खर्च भी कर्मियों पर

एमटीके ट्रेनिंग के बाद अब पीठासीन व मतदान कर्मी 1 का प्रशिक्षण जारी है. एक बार 36 से 40 कमरों में जिले के 6 तहसील के 1500 से ज्यादा कर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है. देवभोग और अमलीपदर तहसील के लगभग 450 कर्मचारियों को 100 से 150 किमी का सफर तय कर ट्रेनिंग में जाना और उतना ही दूरी आने के लिए तय करना होता है. समय पर ट्रेनिंग में पहुंचने और देर रात से पहले घर सुरक्षित पहुंचने 7 से 8 कर्मियों के एक समूह को वाहन किराए पर लेना पड़ता है, प्रति कर्मी को एक ट्रेनिंग में जाने के लिए 800 का खर्च करना पड़ता है.

जिला मुख्यालय में होता था ट्रेनिंग

तीन से चार चरणों में चलने वाले प्रशिक्षण के शुरुआती ट्रेनिंग पहले तहसील मुख्यालय में होता था. दल गठित हो जाने के बाद जिला मुख्यालय में अंतिम प्रशिक्षण दिया जाता था. सभी तहसील मुख्यालय में मास्टर ट्रेनर होते हैं. लेकिन इस बार तहसील से ट्रेनर व ट्रेनी को अपने पैसे खर्च कर जिला मुख्यालय जाना पड़ रहा है. और इसके लिए आयोग के पास कोई अतरिक्त बजट नहीं.

बजट नहीं, फिर भी नाश्ता-पानी दे रहे

सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी तीर्थराज अग्रवाल ने कहा कि ट्रेनिंग में भोजन के लिए कोई अतरिक्त बजट का प्रावधान नहीं है, फिर भी जिला प्रशासन चाय नाश्ता उपलब्ध करा रहा है.

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