Home छत्तीसगढ़ जैन धर्मावलम्बियों द्वारा शास्वत पर्व नवपदजी की ओली

जैन धर्मावलम्बियों द्वारा शास्वत पर्व नवपदजी की ओली

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मुंगेली(नवरतन जैन)। स्थानीय जैन समाज द्वारा तप-जप-संयम के साथ यह पर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व को नगर में चातुर्मासार्थ विराजित जैन साध्वी प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभाश्री जी म.सा.की सुशिष्या प्रखर व्याख्यात्री साध्वीरत्ना श्री कनकप्रभा जी म.सा.आदि ठाणा 3 का सानिध्य प्राप्त है। श्री सुमतिनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर में यह पर्व 20 से 28 अक्टूबर तक मनाया जावेगा। प्रतिदिन परमात्म पूजा पश्चात प्रातः 8.30 से 9.30 तक प्रवचन होंगे, जिसमें प्रमुख रुप से नवपदजी ओली की महत्ता प्रतिपादित की जाएगी तथा श्रीपाल-मयणासुंदरी चरित्र पर प्रकाश डाला जावेगा। तत्पश्चात प्रातः 9.30 से रात्रि 9.30 बजे तक 12 घण्टे अखण्ड मंत्र जाप प्रतिदिन होगा।

प्रथम दिवस 20 अक्टूबर को अरिहंत पद की आराधना की गई। इसमें अरिहंत पद के मंत्र का जाप किया गया। साथ ही नवपद जी की ओली अनेक तपस्वियों द्वारा की जा रही है, जिसमें प्रतिदिन सिर्फ एक अनाज का एक बार आहार होता है, जिसमें दूध, घी, शक्कर, नमक आदि वर्जित होता है। ऐसे तपस्विों की ओली की व्यवस्था पर्व दिनों में श्री जसराज जी अमरीबाई जी गोलछा परिवार के निवास स्थान पर आयोजित है।

साधक द्वारा साधना के माध्यम से साध्य की सेवा कर हम नवपदजी की आराधना कर सकते हैं। नवपद के 9 पदों को अलग-अलग दिवस में तप जप एवं संयम के साथ आत्मसात कर हम भी परमात्म पद की ओर अग्रसर हो सकते हैं। उक्त उदगार सदर बाजार स्थित जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित जैन साध्वी प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्या साध्वीश्री कनकप्रभा श्री जी म.सा. ने महती धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। साध्वी जी ने आगे कहा कि नवपद में 9 पद होते हैं, जिसमें 2 साध्य, 3 साधक और 4 साधन होते हैं। प्रथम और द्वितीय अरिहंत और सिद्ध पद साध्य होते हैं, अर्थात इन्हें प्राप्त करने के लिए आराधना की जाती है। उसके पश्चात क्रमशः 3 आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये साधक माने जाते हैं। शेष 4 दर्शन ज्ञान चरित्र एवं तप ये साधन हैं, जिनके माध्यम से साध्य को प्राप्त किया जा सकता है। साध्वी श्री कनकप्रभा श्री जी ने आगे बताया कि नवपद जी की ओली अनादि काल से मनाई जा रही है, इसलिए इसे शाश्वत पर्व कहा जाता है। इन 9 दिनों में साधक पूरी तरह संयमित जीवन जीते हुए आराधना करते हैं। साध्वी श्री समत्वबोधि श्री जी म.सा. ने धर्मसभा में अरिहंत पद से अपनी बात प्रारंभ करते हुए कहा कि ऐसे जीव जिन्होंने अपने घाती कर्मों का क्षय कर लिया हो, वे अरिहंत कहलाते हैं। अरिहंत परमात्मा की वाणी से अनेक जीवों को मार्गदर्शन मिलता है। साध्वी जी ने आगे कहा कि सज्जन पुरूष ज्यादा बोलते नहीं अपितु कर के दिखाते हैं और उनका जीवन दर्शन लोगों के लिए प्रेरणादायी होता है।

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