रियासत कालीन देवी मां मानकेश्वरी देवी की पूजा की परंपरा करमागढ़ में अब भी जारी

रायगढ़। जिले के केलो वनांचल आदिवासी बाहुल्य तहसील तमनार के पहाड़ों से घिरे ग्राम करमागढ़ में शरद पूर्णिमा पर मां मानकेश्वरी देवी मंदिर में बलि पूजा की परंपरा है. यहां मनोकामना पूर्ण होने पर दर्जनों बकरे की बलि दी जाती है. वहीं हजारों श्रद्धालुओं की ओर से नारियल पुष्प मां और बैगा के चरणों में अर्पित कर मनोकामना मांगी जाती है. रियासत कालीन देवी मां मानकेश्वरी देवी की पूजा की परंपरा करमागढ़ में अब भी जारी है. यहां राजघराने की कुल देवी मां की पूजा हर साल शरद पूर्णिमा के दिन की जाती है. इस साल भी शुक्रवार को यहां शरद पूर्णिमा महोत्सव मनाया गया और बल पूजा किया गया. मान्यता है कि इस दिन बैगा के शरीर मे देवी का आगमन होता है. यहां आने वाले श्रद्धालु उनकी आशीर्वाद के लिए आष्टांग प्रणाम करते हैं. कई लोग उनको छूने के लिए उनके पीछे भागते हैं जो उसे छू लेता है वह अपने आपको धन्य मानता है. जो बैगा को इस दौरान छू लेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होती है. कल बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर माता और बैगा के चरणों में मत्था टेका और आर्शीवाद लिया. वहीं बलि पूजा का कार्यक्रम में सैकड़ों नर्तक मांदर झांझ के साथ कर्मा नृत्य और रात्रिकालीन नाटक के साथ मेला में करीबन 15 हजार लोग शामिल हुए.

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शुक्रवार की दोपहर तीन बजे से बलि पूजा का कार्यक्रम शुरू किया गया. पूजा के बाद बैगा के शरीर के भीतर जब माता का प्रभाव हुआ, तो भक्तों ने बकरों की बली दी. इसके बाद बैगा बकरों का रक्तपान करने लगे. इस पूरे पूजा को देखने वाले श्रद्धालुओं के रोम-रोम खड़े हो गए. दोपहर से शुरू हुई पूजा देर रात तक चली. इसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में रायगढ़ राज परिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी आज भी अपने चैतन्य रूप में विराजित हैं और माता समय-समय पर अपने भक्तों को अपनी शक्ति से अवगत कराती है. रायगढ़ राज परिवार से कुमार देवेंद्र प्रताप सिंह, उर्वशी देवी सिंह ने विधि विधान के साथ परंपरा अनुसार पूजा अर्चना की. इसमें तमनार तहसील, रायगढ़ जिले सहित छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों, ओडिशा समेत अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु शामिल हुए.

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राज परिवार के देवेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि लगभग 600 साल पहले जब एक पराजित राजा जो हिमगीर ओडिशा रियासत का था, उसे देश निकाला देकर बेडियो से बांधकर जंगल में छोड़ दिया गया. राजा जंगल-जंगल भटकता रहा और वह करमागढ़ में पहुंच गया. तब उन्हें देवी ने दर्शन देकर बंधन मुक्त किया. इस तरह एक घटना सन 1780 में तब हुई थी जब ईस्ट इंडिया कंपनी अंग्रेज ने एक तरह से कठोर (लगान) कर के लिए रायगढ़ और हिमगीर पर वसूली के लिए आक्रमण कर दिया. तब यह युद्ध करमागढ़ के जंगली मैदान पर हुआ था. इसी दौरान जंगल में मौजूद मधुमक्खियों के झुंड और जंगली कीटों ने मंदिर की ओर से आकर अंग्रेज पर हमला कर दिया था. इस दौरान अंग्रेज पराजित होकर उन्होंने भविष्य में रायगढ़ स्टेट को स्वतंत्र घोषित कर दिया. इस कारण श्रद्धालु यहां दूर-दूर से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए आते हैं और माता से मनचाहा वरदान अपनी झोली में आशीर्वाद के रूप में पाकर खुशी-खुशी लौट जाते हैं.

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