चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट आने के बाद एक बात साफ है कि BJP की नॉर्थ इंडिया में लहर दिख रही

 रायपुर. चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट आने के बाद एक बात साफ है कि BJP की नॉर्थ इंडिया में लहर दिख रही है. तीन राज्यों में कांग्रेस की हार की यह मुख्य वजह मानी जा रही है. इन चुनावी नतीजों के बाद कई चेहरे हैं, जिनका कद राजनीति में बढ़ गया है तो कइयों का कद को नुकसान हुआ है.

इनके ग्राफ बढ़े 

अमित शाह

अमित शाह को BJP का चाणक्य कहा जाता है. इस बार के विधानसभा चुनावों में यह एक बार फिर से साबित हो गया. उन्होंने एक-एक सीट पर माइक्रो लेवल पर प्लानिंग की थी. टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी मुद्दों को सही तरह से भुनाने के लिए उनकी रणनीति ने फिर से कमाल कर दिया. नतीजा यह है कि नॉर्थ इंडिया में BJP की एक लहर-सी दिख रही है.

अश्विनी वैष्णव

चुनाव परिणाम आने के बाद मध्य प्रदेश चुनाव के सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव ने कहा लोगों ने मोदी की गारंटी पर भरोसा जताया. इस जीत के बाद केंद्रीय रेल मंत्री वैष्णव का कद भी बढ़ गया है.

शिवराज सिंह चौहान

मध्य प्रदेश में वोटिंग से पहले चुनाव प्रचार के दौरान कहा जा रहा था कि शिवराज सिंह चौहान के शासन से लोग नाखुश है और एंटी इनकबेसी फैक्टर काम करेगा. पार्टी ने भले ही शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को पीछे रखकर चुनाव लड़ा हो लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि राज्य में सीएम वही हैं और चौथी बार सत्ता में बीजेपी की वापसी करना पार्टी उनके कद को बढ़ाएगा.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

BJP में इन चुनावों में जिस शख्स का कद बढ़कर सामने दिखा है वह है ज्योतिरादित्य सिंधिया. जीत के बाद सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस के एक नेता ने उनकी हाइट को लेकर मजाक उड़ाया था. उन्हें अब जवाब मिल गया है. सिंधिया को मध्य प्रदेश के भावी सीएम की तरह देखा जा रहा है. हालांकि, सिंधिया कह रहे हैं कि फैसला पार्टी को लेना है. उन्होंने खुद को कार्यकर्ता बताया.

रेवंत रेड्डी

रेवंत रेड्डी वह शख्स हैं, जिनकी अगुआई में कांग्रेस ने तेलंगाना में चुनाव लड़ा. पार्टी राज्य में पहली बार सरकार बनाने जा रही है. आलाकमान के सपोर्ट और एक तय रणनीति के साथ रेड्डी ने चुनाव की अगुआई की. पिछले कुछ महीने पहले तक जो कांग्रेस पार्टी तेलंगाना में कमजोर थी वह उपचुनावों में हार और पार्टी के भीतर चुनौती के बावजूद जीतकर सरकार बनाने की दहलीज पर खड़ी है.

इन नेताओं का ग्राफ गिरा 

अशोक गहलोत

कांग्रेस के कद्दावर नेता और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस की नैया पार लगाने के लिए योजनाओं की झड़ी लगा दी थी. साथ ही प्रचार पर भी काफी खर्च किया गया. स्थानीय लेवल पर गहलोत के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया, लेकिन मोदी मैजिक के आगे टिक नहीं पाए. आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति में वापसी की संभावना कमजोर है.

कमलनाथ

कमलनाथ मध्यप्रदेश में कमल को रोकने में सफल नहीं हो पाए. ऐसा अनुमान लगाया गया था कि शिवराज सिंह चौहान के 18 साल के कार्यकाल के बाद एक एंटी इनकबेसी फैक्टर का लाभ कांग्रेस को मिलेगा, लेकिन कमलनाथ उसे भुनाने में विफल रहे. इस बार कांग्रेस की वापसी न होने से कमलनाथ के लिए अब आगे का रास्ता कठिन हो गया है.

दिग्विजय सिंह

मध्य प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर रही है. बीच में कुछ समय के लिए कांग्रेस सरकार में थी. कांग्रेस की वापसी की मुहिम में दिग्विजय का रोल अहम था, लेकिन चुनाव परिणाम ने बता दिया कि वह इसमें नाकाम रहे. अब पांच साल बाद जब विधानसभा चुनाव होगा तब क्या हालात होंगे ये भविष्य की बात है.

भूपेश बघेल

भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के कद्दावर नेता के तौर स्थापित हो चुके थे और चुनावी स्टार प्रचारक भी. मगर, इस बार अपनी कुर्सी नहीं बचा जाए. बघेल ने गौठान जैसी स्कीम लागू की थी, जो सॉफ्ट हिंदुत्व नीति मानी जा रही थी. यानी वह एक तरह से BJP के पिच पर बैटिंग कर रहे थे, लेकिन इस बार वह आउट हो गए.

के. चंद्रशेखर राव (KCR)

तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (KCR) की जीत की हैटट्रिक का रास्ता खटाई में पड़ गया. पिछले दो कार्यकाल तक KCR सत्ता में थे. इस बार एंटी इनकबेसी से सामना था और करीब 40 विधायकों को लेकर सत्ता विरोधी लहर थी. इसके बावजूद उन्होंने उन विधायकों को चुनावी मैदान में मौका दिया. ये दांव भारी पड़ गया.

टीएस सिंहदेव

कांग्रेस के जो दिग्गज अपनी सीट नहीं बचा पाए उनमें डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव भी शामिल रहे. वह बहुत कम मतों के मार्जिन से हारे हैं. ये हार इसलिए भी अहम है क्योंकि सरगुजा को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. यही कारण है कि उनकी इस हार के बाद उनका भी ग्राफ घटा है.

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