आदिवासी समाज के तत्त्वाधान में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में वीर मेला या देव मेला का आयोजन

कांकेर. देव मेला छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृति, त्यौहार और परम्परा के लिए देश भर में जाना जाता है। जिसमें मेला मड़ई का विशेष महत्व है। प्रदेश के सभी जिलों में अलग अलग रूप से मंडई का आयोजन किया जाता है। लेकिन बालोद जिले में हर साल आयोजित होने वाले वीर मेला का एक विशेष महत्व होता है। जहां आदिवासी समाज के तत्त्वाधान में राजाराव पठार ग्राम करेंझर में वीर मेला या देव मेला का आयोजन किया जाता है। इस मेले को लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सवाल पूछे जाते हैं। सर्व आदिवासी समाज द्वारा होता है आयोजन राजाराव पठार में बालोद, धमतरी और कांकेर जिले के आदिवासी समाज द्वारा वीर मेले का आयोजन किया जाता है। आदिवासी समाज की वेशभूषा संस्कृति को जानने का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आकर आप उनकी संस्कृति से वाकिफ हो सकते है। इसे आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। यहां हर साल आम लोगों के साथ साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी पहुंचते हैं। यहां तीन दिवसीय मेल में प्रदेश भर के ध्रुव गोड़, बैगा, कमार गोड़ नगारची समाज के आदिवासी शामिल होने पहुंचते हैं।
तीन दिनों तक इन कार्यक्रमों का होता है आयोजन
राजाराव पठार में तीन जिलों के आदिवासी समाज के तत्वावधान में प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी 08, 09 और 10 दिसम्बर 2023 को शहीद वीर नारायण सिंह के शहादत दिवस के अवसर पर विराट वीर मेला राजाराव पठार में आयोजन किया गया है। जिसमें देव स्थापना, देव मेला, आदिवासी हॉटबाज़ार, रैली, आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम, रेला पाटा, आदिवासी महापंचायत तथा शहीद वीरनाराण सिंह की श्रद्वांजली सभा का कार्यक्रम किया जाता है। इस बार शहीद वीर नारायण सिंह की प्रतिमा का अनावरण भी किया गया। मेले में बालोद, धमतरी, कांकेर, राजनांदगांव, मानपुर मोहला क्षेत्र के अदिवासी समाज के नागरिक, प्रतिनिधि पहुंचते हैं
शहीद वीर नारायण को दी जाती है श्रद्धांजलि
इस मेले के आयोजन के माध्यम से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर शहीद वीनारायण सिंह को श्रद्धांजलि दी जाती है। साल 2013 में शहीद वीर नारायण सिंह का नाम इस मेले से जोड़ा गया। उनकी शहादत दिवस के दिन ही इस मेले का समापन होता है। आदिवासी समाज के क्षेत्र के सभी देवी देवताओं के विशाल मिलन के बाद विशेष पूजापाठ का आयोजन मेले में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रामीणों के साथ गांव के देवी देवता भी इसमें शामिल होते है। यहां बाबा राजाराव के साथ लिंगो बाबा और चरवाहा देव भी स्थापित किया गया है। जिसके कारण इसे देव मेला भी कहते हैं।
क्षेत्र में संकट आने पर बाबा राजाराव की होती है पूजा
बाबा राजाराव की स्थापना कब हुई इसका आज तक कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि जब भी क्षेत्र में कोई संकट आता है, तब बाबा राजाराव की पूजा-अर्चना की जाती है। यह मेला पहले करेंझर में होता था लेकिन अब बाबा के महत्व को लोग जानने लगे जिसके बाद राजाराव पठार में मेले का आयोजन किया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि बाबा राजा राव के साथ शेर भी निवास करता है, और जब भी कहीं कोई संकट आने वाला होता है तो इसकी सूचना शेर की दहाड़ से मिलती है। बाबा राजाराव के मुख्य स्थान पर महिलाओं को आने की अनुमति नहीं होती

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