सनातन धर्म के संस्कार वापिस आना बाल्यावस्था में ही संभव है– बी के रुहानी

चॉडीडीह/ संस्कार परिवर्तन शिविर के द्वितीय दिवस में चांटीडीह की पार्षद महोदया श्रीमती रूपाली गुप्ता जी, डॉ यू एन घोष, डॉ पी आर साहू, राधे दीदी एंजल दीदी समेत दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का आगाज किया

चॉटीडीह रामायण चौक वार्ड क्रमांक 59 के पार्षद महोदया श्रीमती रूपाली ने बताया ग्रीष्मकालीन अवकाश में हर माता-पिता की शुभ आस रहती है कि बच्चे अपने भीतर के छिपे हुए प्रतिभा को पहचाने ,पहले के जमाने में छुट्टियां मनाने का कितना सुंदर तरीका हुआ करता था अब तो दौर ही कुछ और चल रहा है लेकिन आज समय बदल गया है सही मायने में बच्चे वही अच्छे होते हैं जिनमे सनातन धर्म के संस्कार हैं और नैतिक मूल्यों का समावेश हो हर बच्चों में बचपन से ही कुछ ना कुछ गुण आवश्यक होते हैं उनके गुणों का विकास करना बचपन में ही आवश्यक होता है तभी सच्चे अर्थों में व्यक्ति का विकास हो सकता है

बी के सृष्टि बहन जी ने बताया कि आज शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के लिए आध्यात्मिक विकास बहुत जरूरी है साथ ही साथ उन्होंने बताया आज भाग दौड़ की दुनिया में लोगों की खान-पान रहन-सहन सोना- जागना सभी दिनचर्या बहुत बदल चुका है इसलिए आज बीमारियां भी बहुत बढ़ गई है पहले सब लोग अपनी हर दिनचर्या सब समय पर करते थे क्योंकि इतनी भागम -भाग नहीं थी इसीलिए बीमारियां भी कम थी अत. हम ब्रह्माकुमारियाँ बहने अपने भूले हुए सनातन धर्म वापिस लाने में प्रयासरत है और आगे ऐसे कार्यक्रम भी होते रहेंगे

इसी तरह डॉ घोष ने बताया ब्रह्मकुमारिज बहनों का समर कैंप आयोजन काफी सराहनीय है ऐसे प्रोगाम से बच्चे राजयोग मेडिटेशन अभ्यास से अपने जीवन के नकारात्मक विचार को छोड़ जीवन मे सकारात्मक बदलाव ला सके
इस पर हमारा पूरा विश्वास हो आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं जिनके तस्वीरों के ऊपर आज भी मालाए चढ़ाई जाती है उनका नमन किया जाता है उनको भी खुद पर और ईश्वर विश्वास था साथ ही साथ उनके विचार सकारात्मक थे तब तो इतने महान और श्रेष्ठ कार्य किये

डॉ पी आर साहू भाई जी ने बताया_ जैसा अन्न वैसा मन हो जाता है बच्चे मन के सच्चे तो होते है। पर हम जो भी खाते हैं उसका हमारे चेतन मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है जैसा हम खाएंगे हम वैसे बन जाएंगे तो क्यों ना हम सात्विक भोजन ही खाये तो मन भी अच्छा और तन भी अच्छा बन जाएंगे जैसे हमारे मन को अच्छी चीज सुनने का होता है अच्छे आध्यात्मिक गीत ,भजन सुनने का मन होता है तो सुख और शांति का अनुभव होता है इस प्रकार से यह शरीर भी कहता है कि मेरे अंदर शुद्ध आहार डालो ताकि मैं मन और बुद्धि को भी शुद्ध बना कर रख सकू क्योंकि बेकार चीज से शारीरिक कष्ट उत्पन्न होते हैं भोजन का भी हमारे जीवन में बड़ा महत्व है भगवान ने और प्रकृति ने हमारे लिए इतने अच्छे-अच्छे सब्जियां फल और भी बहुत सारी चीज सौगात में दी हुई है तो हम वही चीज खाएं जो भगवान ने हम मनुष्यों के लिए बनाया है और जो चीज जानवर के खाने के लिए बनी हुई है उसे चीज को खाकर हम जानवर जैसे ना बन जाए इस बात का हम सबको ध्यान रखना है और विशेष हम घर का और मां के हाथों का बना हुआ भोजन खाए क्योंकि मां के हाथों में अपने बच्चों के लिए ढेर सारी दुआएं होती है आशीर्वाद होती है दुआओं का कोई रंग नहीं होता लेकिन यह दुआ एक दिन रंग जरूर लाती है कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बी के एंजल बहन रूहानी बहन बीके संगम बहन डाँ करन भाई , किशन भाई सूर्या भाई अभिषेक भाई आदि सभी का विशेष सहयोग रहा!

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