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अमेरिका में सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करेगी मनप्रीत, खुशी व्यक्त करते बोली- ‘मैं काफी उत्साहित…’
देश की बेटियां हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं। ऐसी कई लड़कियां हैं जिन्होंने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी भारत का नाम ऊंचा किया है उन्हीं में से एक है मनप्रीत मोनिका सिंह। मनप्रीत आज से लॉ नंबर 4 में हैरिस काउंट सिविल कोर्ट में एक न्यायधीश के पद के तौर पर नियुक्त हुई हैं।
भारतीय मूल की सिख महिला मनप्रीत मोनिका सिंह रविवार को अमरीका के लॉ नंबर-4 में हैरिस काउंटी सिविल कोर्ट में एक न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया है। मोनिका ऐसी पहली भारतीय सिख महिला है जो अमरीका में न्यायाधीश के रूप में चुनी गई हैं। मोनिका का कहना है कि एक न्यायाधीश के रूप में उनका चुनाव बड़े पैमाने पर सिख समुदाय के लिए बहुत मायने रखता है।
मनप्रीत के पिता का संक्षिप्त नाम ए.जे. है जो एक वास्तुकार हैं। 1970 के दशक की शुरुआत में वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए अमरीका चले गए थे। वह कहती हैं कि उस दौर में मेरे पिता को एक पगड़ीधारी सिख के रुप में भेदभाव का सामना करना पड़ा था और उस समय अप्रवासियों के लिए भेदभाव के खिलाफ भी आवाज उठाने के लिए कोई मंच नहीं था। मोनिका कहती हैं कि अब समय बदल गया है स्कूल में मेरे भाई को भी धमकाया जाता था, लेकिन अब सब लोग जानते हैं कि अब हम अपनी आवाज उठा सकते हैं। हालांकि यह वास्तव में अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, हम सभी अभी भी किसी न किसी स्तर के भेदभाव से गुजरते हैं। वह कहती है कि एक अधिवक्ता के तौर पर मैंने हमेशा एक संकल्प खोजने और एक बदलाव लाने की कोशिश की है।
मोनिका ने 20 साल तक एक ट्रायल वकील होने के साथ-सा हमेशा अपने बनाए रास्ते पर ही जाना पसंद किया। वह बताती है कि एक बच्चे के रूप में मुझे इतिहास विशेष रूप से नागरिक अधिकार आंदोलन बहुत ही दिलचस्प लगा। लोगों को बदलाव लाते हुए देखने मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात थी। इसलिए अधिकांश सिख परिवारों के बच्चों की तरह इंजीनियरिंग या चिकित्सा का पीछा करने के बजाय मैंने वकील बनने का विकल्प चुना। दो बार एक ब्राउन लेडी के रूप में उन्हें कई सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। वह कहती हैं जब मैंने शुरुआत की तो ह्यूस्टन में कानून का पेशा गोरे पुरुष करते थे। ज्यादातर लोगों को मेरे नाम का उच्चारण करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा था। वे मुझे मन-प्रीत कहते थे और मुझसे पूछते थे कि मैं कहां से हूं और मेरे नाम का क्या मतलब है।
मोनिका ऐसी पहली भारतीय सिख महिला हैं जो अमेरिका में न्यायाधीश के रुप में चुनी गई हैं। इस पद पर नियुक्त होकर वह काफी खुश हैं।
‘न्यायधीश के रुप में चुनाव लड़ना बहुत है मायने’
मोनिका ने कहा कि वह इस बात को लेकर बहुत ही उत्साहित हैं कि वह एक न्यायाधीश के रुप में उनका चुनाव बड़े पैमाने पर सिख समुदाय के लिए क्या मायने रखता है। ‘मैं इस बात से उत्साहित हूं कि समुदाय को स्पॉटलाइट मिल रही है और लोग पूछ रहे हैं कि सिख कौन हैं और इससे क्या फर्क पड़ता है।’
अमेरिकन ड्रीम हासिल करने के लिए अमेरिका गए थे मनप्रीत के पिता
मनप्रीत के पिता का नाम एजे हैं जो एक वास्तुकार हैं, 1970 के दशक की शुरुआत में अमेरिकन ड्रीम हासिल करने के लिए अमेरिका चले गए थे। यह पूछे जाने पर कि आप्रवासियों के रुप में उनके माता-पिता के अनुभव ने उसे कैसे आकार दिया। वह कहती हैं ‘एक पगड़ीधारी सिख के रुप में मेरे पिता को भेदभाव का सामना करना पड़ा, हालांकि अधिकांश अप्रवासियों की तरह, वह उस समय किसी और चीज की तुलना में परिवर्तन को आत्मसात करने के बारे में ज्यादा चिंतित थे। वह अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते थे कि वह वापस से कैसे लड़ सकते हैं। इसके अलावा उन दिनों अप्रवासियों के लिए भेदभाव के खिलाफ भी आवाज उठाने के लिए कोई मंच नहीं था।’
‘मेरे भाई और मेरे साथ भी होता था भेदभाव’
आगे बात करते हुए मोनिका कहती हैं कि- ‘अब समय बदल गया है स्कूल में मेरे भाई को भी धमकाया जाता था, लेकिन अब सब लोग जानते हैं कि वे बोल सकते हैं। हालांकि यह वास्तव में दूर नहीं होता है और हम सभी किसी न किसी स्तर के भेदभाव से गुजरते हैं, न केवल मेरे परिवार के लिए बल्कि मेरे धर्म के कारण भी जो हमें अधिवक्ता बनाता हैं, मैंने हमेशा एक संकल्प खोजने और एक बदलाव लाने की कोशिश की है।’
खुद बनाया अपना रास्ता
मोनिका ने 20 साल तक एक ट्रायल वकील होने के साथ-सा हमेशा अपने बनाए रास्ते पर ही जाना पसंद किया। ‘एक बच्चे के रुप में मुझे इतिहास, विशेष रुप से नागरिक अधिकार आंदोलन, बहुत ही दिलचस्प लगा। लोगों को बदलाव लाते हुए देखने मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात थी। इसलिए उस समय अमेरिका में अधिकांश सिख परिवारों के बच्चों की तरह इंजीनियरिंग या चिकित्सा का पीछा करने के बजाय, मैंने वकील बनने का विकल्प चुना।’
‘शुरुआत में करना पड़ा कठिनाईयों का सामना’
दो बार एक ब्राउन लेडी के रुप में उन्हें कई सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। वह कहती हैं ‘जब मैंने शुरुआत की तो ह्यूस्टन में कानून का पेश गोरे पुरुषों करते थे। ज्यादातर लोगों को मेरे नाम का उच्चारण करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा था। वे मुझे मन-प्रीत कहते थे और मुझसे पूछते थे कि मैं कहां से हूं और मेरे नाम का क्या मतलब है।’
‘मेरे बॉस ने मुझे हमेशा याद करवाया’
आगे मनप्रीत कहती हैं कि- ‘मुझे हमेशा मेरे बॉस ने यह बताने की सलाह दी कि मैं अमेरिका का हूं। वह मुझसे कहा करते थे कि लोगों को यह एहसास दिलवा दूं कि मेरे माता-पिता भारत से हैं, मैं नहीं।’
सिख जज महिला का क्या मतलब होगा?
इस बात का जवाब देते हुए मनप्रीत कहती हैं कि- ‘ह्यूस्टन एक बहुत ही अलग शहर है। मैं पहली पीढ़ी के अप्रवासी और एक महिला होने के परिप्रेक्ष्य लाउंगी। मैं कानून का अभ्यास करती हूं ताकि यह हिस्सा तरल हो जाए। लेकिन दूसरा हिस्सा, जो अमूर्त है, मैं इस तरह से लाने में सक्षम हूं कि किसी ने अब तक उस स्थिति में पेश नहीं किया है।’
‘समुदाय का प्रतिनिधित्व करना एक सम्मान है’
मनप्रीत कहती हैं कि- ‘समुदाय का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होना एक सम्मान की बात है। मुझे उम्मीद है कि मेरे पास दुनिया भर के सभी सिखों का आशीर्वाद है।’