पूरे लश्कर के साथ निकली गणगौर माता की सवारी, शिव के बिना क्यों होती है मां की पूजा

गणगौर पूजन का एक अनूठा रिवाज, जहां गणगौर माता (मां पार्वती) की ईसरजी (भगवान शिव) के बिना पूजा की जाती है। कन्याओं, युवतियों और सुहागिनों का प्रसिद्ध त्योहार है।

राजस्थान में कन्याओं, युवतियों और सुहागिनों का प्रसिद्ध त्योहार गणगौर पूजा है। इसको लेकर सभी में अच्छा खासा उत्साह रहता है। वहीं, गणगौर पूजन के पीछे अलग-अलग स्थानों पर कई रीति रिवाज हैं। ऐसा ही अनूठा रिवाज जयपुर में गणगौर पूजन में देखने को मिलता है। जहां गणगौर माता (मां पार्वती) की ईसरजी (भगवान शिव) के बिना पूजा की जाती है।

राजस्थान में आज धूमधाम से गणगौर मनाई जा रही है। जगह-जगह गणगौर मां की सवारी निकाली जा रही है। जयपुर, जोधपुर में पारंपरिक तरीके से पर्व मनाया जा रहा है। इसमें सबसे खास है जयपुर में गणगौर की सवारी। जयपुर के पूर्व राजपरिवार के निवास से गणगौर माता की सवारी निकाली गई। त्रिपोलिया गेट पर पूर्व राजपरिवार के मुखिया पद्मनाभ सिंह ने गणगौर सवारी की अगवानी की। वहीं, जोधपुर में 2.5 करोड़ (4 किलो सोने) के गहने पहनकर गवर माता की शोभायात्रा निकाली गई।

माता के पीहर में होती है पूजा

पिछले 263 सालों से गणगौर माता अपने पीहर जयपुर में अकेली पूजी जा रही हैं। इस दौरान गणगौर की सवारी भी जयपुर में अकेले ही निकाली जाती है। इसके पीछे का इतिहास है। रूपनगढ़ के महाराजा सावत सिंह के समय वहां के महंत ने किशनगढ़ में सवारी निकालने के लिए ईसर-गणगौर नहीं दिए। इस पर किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह जयपुर से ईसरजी को अकेले लूट कर ले आए। तब से जयपुर में अकेले ही गणगौर की पूजा का रिवाज है, जबकि जयपुर के अलावा अन्य रियासतों में गणगौर के साथ ईसरजी की सवारी निकलती हैं। बाद में किशनगढ़ में भी ईसरजी के साथ गणगौर की स्थापना की गई। जिसके बाद से वहां भी दोनों की सवारी साथ निकाली जाती है।

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