अस्पतालों की बदहाली पर हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती: हाईकोर्ट ने कहा- महंगी मशीनें शोभा बढ़ाने के लिए नहीं, मरीजो की जांच हो और समय पर रिपोर्ट भी मिले

बिलासपुर/ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर सख्ती दिखाई है। उन्होंने कहा कि अस्तपालों में महंगी मशीने केवल शोभा बढ़ाने के लिए नहीं होनी चाहिए। मरीजों की जांच हो और समय पर रिपोर्ट भी मिले। तभी इनकी उपयोगिता साबित होगी।

दअरसल, हाईकोर्ट में सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था को लेकर चल रही जनहित याचिका की सुनवाई चल रही थी। इस दौरान राज्य शासन की तरफ से कोर्ट को जानकारी दी गई कि जांच के लिए आवश्यक रीएजेंट की कमी को पूरा करने के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मुख्य सचिव ने अपने शपथपत्र में बताया कि जिला अस्पताल में सेमी-आटोमेटिक मशीन से जांच जारी है और सिम्स में भी परीक्षण शुरू हो गया है।

कोर्ट कमिश्नरों ने सौंपी रिपोर्ट, बताया दूर नहीं हुई रीएजेंट की कमी इस दौरान कोर्ट कमिश्नरों ने डिवीजन बेंच के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश की। इसमें बताया गया कि बायोकेमेस्ट्री मशीन और हार्मोन एनालाइजर मशीन के लिए रीएजेंट की कमी है। वहीं, इससे पहले सीजीएमसी ने बीते 19 अप्रैल को शपथ पत्र में अस्पतालों में रीएजेंट की डिमांड और सप्लाई की जानकारी दी थी। जिसमें बायोकेमेस्ट्री मशीन के लिए 122 की डिमांड में केवल 36 की सप्लाई की गई थी। हार्मोन एनालाइजर मशीन के लिए 57 में से 39 ही सप्लाई हो पाई थी। शासन की तरफ से अधिवक्ता ने इस मामले में अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं। प्रकरण की अगली सुनवाई 19 दिसंबर को होगी।

अव्यवस्था पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्प्णी इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सिन्हा की डिवीजन बेंच ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि अस्पतालों के लिए खरीदी गई मशीनों का सही उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नियमित जांच और समय पर रिपोर्ट उपलब्ध कराने की व्यवस्था स्वास्थ्य विभाग और सरकार की जिम्मेदारी है।

थायराइड, खून-पेशाब जैसे जरूरी जांच भी नहीं हो पा रही बीते दिनों बिलासपुर जिला अस्पताल में अव्यवस्था की बात सामने आई थी। हाई कोर्ट ने इस मसले पर संज्ञान लेकर सुनवाई प्रारंभ की। डिवीजन बेंच ने प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में जांच की सुविधा और अन्य सुविधाओं की पड़ताल के लिए कोर्ट कमिश्नरों की नियुक्ति कर जांच का निर्देश दिया था। जांच के दौरान यह बात सामने आई कि जिला अस्पताल में थायराइड, खून-पेशाब जैसे जरूरी जांच भी नहीं हो पा रही है। इसके चलते मरीजों को प्राइवेट लैब का सहारा लेना पड़ रहा है। कोर्ट कमिश्नरों ने इस बात की भी जानकारी दी थी कि कुल आठ मशीनों में से चार बंद हैं, तो चार से जांच हो रही है। कोर्ट ने लैब में स्थापित मशीनों का नाम एवं वर्ष, पिछले दो वर्षों में रीजेंट कब-कब प्राप्त हुआ, कुल जांच की संख्या और किन-किन मशीनों का रीएजेंट समाप्त हो चुका है, उसका मांग पत्र कब भेजा गया है अथवा नहीं एवं रीएजेंट की उपलब्धता की वर्तमान स्थिति पर जवाब मांगा था। बता दें कि केवल जिला अस्पताल के मातृ एवं शिशु अस्पताल में प्रतिदिन 60 से 70 मरीज आते हैं।

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