जोधपुर से लौटकर ललित एवं मनीष शर्मा की रिपोर्ट…
जोधपुर शहर जिसे सूर्यनगरी भी कहा जाता है, इस शहर में ऐसा बहुत कुछ हैं जिसे आप एक बार देखने के बाद बार-बार देखना चाहते हैं लेकिन अगर इस शहर के गौरव की बात करें तो उस किले की सुंदरता के चर्चे देश में ही नहीं विदेश में भी गुंजते हैं
जोधपुर शहर जिसे राजस्थान की सूर्यनगरी भी कहा जाता है, इस शहर में ऐसा बहुत कुछ हैं जिसे आप एक बार देखने के बाद बार-बार देखना चाहते हैं लेकिन अगर इस शहर के गौरव की बात करें तो उस किले की सुंदरता के चर्चे देश में ही नहीं विदेश में भी गुंजते हैं। मेहरानगढ़ किले को जोधपुर शहर की शान कहा गया है।
जोधपुर के स्थानीय लोगों को अपने किले पर बहुत गर्व है क्योंकि इस किले को देखने के लिए हर साल इंडिया के अलावा विदेश से भी लोग आते हैं। जोधपुर शहर के हर कोने से नजर आने वाला यह शानदार किला लगभग 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है। अब आप खुद ही इस बात का अंदाजा लगा सकती हैं कि यहां की ऊंचाई से पूरा जोधपुर शहर का नजारा कैसा दिखाई देता होगा।
शानदार यह किला लगभग 120 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस किले के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 1965 में भारत-पाक के युद्ध में सबसे पहले मेहरानगढ़ के किले को टारगेट किया गया था लेकिन ऐसी माना जाता है कि माता की कृपा से यहां किसी का बाल भी बांका नहीं हो पाया। इस किले की चोटी से पाकिस्तान की सीमा दिखाई देती है।
मेहरानगढ़ किला भारत के सबसे बड़े किलो में से एक है। यहां आपको बता दें कि यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई 73 मीटर से भी ऊंचा है। किले के परिसर में चामुंडा देवी का मंदिर भी है और इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह माता यहां से अपने शहर की निगरानी रखती हैं।
इस किले के दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर तक फैली है। इनकी ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट और चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है। इस किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजें और जालीदार खिड़कियां हैं। जोधपुर शासक राव जोधा ने 1459 को इस किले की नींव डाली थी, जिसका मतलब यह हुआ कि इस किले का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है।
जय पोल जिसे विजय का द्वार भी कहा जाता है इसका निर्माण 1806 में महाराजा मान सिंह द्वारा करवाया गया था।
लोहा पोल जो किले परिसर के मुख्य द्वार का अंतिम भाग है। इसके पश्चात बायीं ओर रानियों के सती प्रथा के हाथो के निशान पाए जाते हैं जिन्होंने 1843 में अपने पति महाराजा मान सिंह की चिता में खुद को भी जला लिया था।
फतेह पोल जिसका निर्माण 1707 में मुगलो की पराजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था। किले की भीतर कई शानदार और सजावटी महल हैं। इनमे मोतीमहल, फूल महल, शीशा महल, सिलेह खाना और दौलत खाना शामिल हैं।
फतेहपोल स्कूल 200 साल पहले यहां हवेली थी, 1912 से यहां चल रही जोधपुर की पहली गर्ल्स स्कूल
ह्यूसन मंडी स्कूल 19वीं शताब्दी में यहां पर राजभवन था, 1912 में स्कूल की स्थापना हुई।
फतेहपोल स्कूल की सफल शुरुआत के बाद साल 1912 में राजकीय ह्यूसन मंडी की शुरुआत हुई। एक भाग में जोधपुर का पहला जनाना अस्पताल शुरू किया गया। जो आज डिस्पेंसरी के रूप में चलता है। शेष भाग में स्कूल और आगे संस्कृत शिक्षा के लिए स्कूल दिया गया। जो आज भी चलता है। इतिहास में जाए तो इसे तलहटी का महल कहा जाता था। सन् 1587 राजभवन का निर्माण करवाया गया था। महाराजा मानसिंह के शासनकाल में 19वीं शताब्दी तक राजभवन की भांति इसका उपयोग किया गया।
आज से करीब 200 साल पहले फतेहपोल स्कूल धाय भाई जगन्नाथ की हवेली थी। इसका निर्माण वर्ष 1816 में शुरू हुआ। इसके साथ ही कुएं की खुदाई का कार्य भी शुरू हुआ। यहां कांच के महल बनाने के साथ बगीचे भी थे। साल 1912 में यहां बच्चियों के लिए जोधपुर की पहली महिला स्कूल खुली। बेटियां पढ़ने से झिझके नहीं, इसलिए स्कूल खुलने के शुरुआती समय में लोग 15 मिनट रास्ते में नहीं आते। समाजसेवी अरुण कुमार जोशी बताते हैं कि साल 1920 में स्कूल उप्रावि, 1968 में माध्यमिक और 1994 में सीनियर सैकंडरी कर दिया गया। वर्तमान में स्कूल प्रिंसिपल प्रवीणा चारण हैं।
इस स्कूल को वर्तमान में 5 करोड़ रुपयों की लागत से सुधारा जा रहा है। एक पूर्व छात्रा व्यय कर रही है। यहां विद्यार्थी व स्टाफ के लिए 13 रूम बन रहे हैं। स्कूल का स्वरूप बरकरार रखने के लिए घाटू के लाल पत्थर ही काम लिए जा रहे हैं, ताकि स्कूल महल की भांति दिखे। फर्नीचर भी भेंट दिया जा रहा है। स्कूल में घुसते ही सामने व बायीं तरफ वाला भाग जर्जर है। यहां बच्चियों को बैठाया नहीं जाता।
गुलाब सागर का निर्माण जोधपुर नरेश विजय सिंह की पासवान गुलाब राय ने सन् 1788 में करवाया था। पहले वहां बावड़ी थी, जिसके कोनों में सुंदर झरोखे हैं। इसके पास रिद्धरायजी का मंदिर है। गुलाब सागर के बायीं तरफ राम मंदिर है जो निर्माण के बाद ही जमीन में धंस गया था, इसलिए उसे धंसा हुआ मंदिर कहते हैं। पुल के दूसरी तरफ छोटा जलाशय है जिसे गुलाब सागर का बच्चा कहते हैं।
इसे गुलाब राय के पुत्र शेर सिंह की स्मृति में 1835 में करवाया गया था। इसके पीछे गुलाब राय के महल के झरोखों में की नक्काशी भी देखने लायक है। 1916 में स्कूल खुला था। स्कूल कक्षा 9 से 12वीं तक है। तीनों संकाय हंै। छात्राओं का नामांकन सर्वाधिक है। कई छात्राएं यहां पढ़ने आती हैं। समय-समय के साथ यहां कक्षा-कक्षों का रखरखाव भी अच्छा हुआ है।
देश की संसद व विधानसभा में आज महिलाओं को आरक्षण देने के लिए नए कानूनों पर जिरह चल रही हैं। वहीं प्रदेश में शिक्षा विभाग की अध्यापक लेवल प्रथम भर्ती में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने की चर्चाएं हैं। यानी 21वीं सदी में भी महिलाओं को उनका हक देने पर ही मंथन-चर्चा हो रही हैं। जबकि जोधपुर का इतिहास उठाए तो महिलाओं व उनकी शिक्षा को लेकर हम 20वीं सदी में ही सजग हो गए थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हमारे जोधपुर की पहली महिला स्कूल फतेहपोल, राजकीय ह्यूसन मंडी और राजमहल स्कूल।
एक शताब्दी से बेटियों के लिए समर्पित ये शिक्षक संस्थान आज भी सरकारी उपक्रम में जिंदा है, लेकिन फतेहपोल व ह्यूसन मंडी स्कूल उपेक्षित अवस्था में हैं। ऐतिहासिक इमारतों के साथ चल रही स्कूलें अब जगह-जगह से जर्जर हो रही है। शानदार नक्काशी, झरोखे व कंगूरे लगे हुए घाटू के लाल पत्थर कई सालों से मरम्मत मांग रहे हैं, लेकिन सरकारों के पास ऊंट के मुंह में जीरे के समान बजट होने के कारण इनकी कोई देखभाल नहीं की जा रही है। कमजोरी ये है कि इनके रखरखाव में सरकार के साथ हम भी कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहे हैं।
महलों में चल रही इन स्कूलों में बारिश के दिनों में हादसे का अंदेशा रहता है। घाटू के पत्थर पानी लगने से बिखरते हैं। हर साल कमरों के रिपेयर को लेकर स्कूल प्रशासन की ओर से समग्र शिक्षा अभियान में पत्र भेजे जाते हैं, लेकिन सरकार के समक्ष बजट कम होने के कारण सभी स्कूलों में रिपेयरिंग नहीं हो पाती। बारिश के दिनों में इन स्कूलों में कई बार घाटू के छज्जे तक गिर चुके हैं। जबकि महल वाली इन स्कूलों को सुधार के लिए करोड़ों रुपए चाहिए।
आज के हालात: अधिकांश भाग जर्जर, बारिश का पानी क्लास में
आज स्थिति ये है कि स्कूल में पढ़ रही छात्राओं को सुरक्षित कमरे तलाश कर पढ़ाया जाता है। बारिश के दिनों में कमरों में पानी घुस जाता है। आसपास के मकानों का पानी कक्षाओं में आ जाता है। इससे दीवारों पर सीलन भी है। स्कूल में एक प्राचीन भैरूजी का मंदिर है, जो आस्था का केंद्र है। नए कमरों के अलावा शेष जगह पूरी तरह से जर्जर है। इस स्कूल की प्राचीन बनावट दर्शनीय है, लेकिन रखरखाव के अभाव में सब जीर्ण-शीर्ण हालात में है। राज्य सरकार से पर्याप्त फंड नहीं होने के कारण स्कूल भी दानदाताओं की बांट जो रहा है। ये स्कूल 1 से 6 महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम व शेष बारहवीं तक कक्षाएं हिंदी मीडियम है।
आज के हालात: पूरी स्कूल जर्जर, दीवारें मरम्मत मांग रही
कक्षा 1 से 6 इंग्लिश मीडियम व 9 से 12वीं तक हिंदी मीडियम चलता है। यहां एक डिस्पेंसरी है। ब्वॉयज मंडी स्कूल भी है। एक भाग में संस्कृत स्कूल है। स्कूल की बनावट में कलाकृतियां, झरोखे व नक्काशी दर्शनीय है, पर सरकारी कम बजट के रखरखाव में पूरी स्कूल मरम्मत मांग रही है। बारिश में खतरा रहता है।