रायपुर. पितृपक्ष में कल यानी 11 अक्टूबर को द्वादशी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. पितृपक्ष में पड़ने वाली द्वादशी तिथि पर पितरों के साथ साधु-संतों के श्राद्ध की भी परंपरा है. मान्यता है कि द्वादश के दिन विधि-विधान से श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि करने पर उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति और हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. द्वादशी तिथि पर पितरों और साधु-संतों के लिए किस समय श्राद्ध करना उचित रहेगा.
सनातन परंपरा के अनुसार पितृपक्ष की द्वादशी तिथि पर सााधु-संतों का श्राद्ध किया जाता है. यदि आपके परिवार से जुड़े किसी व्यक्ति ने गृहस्थ आश्रम को छोड़कर संन्यास की परंपरा को अपना लिया और उनके दिवंगत होने की तिथि न ज्ञात हो तो आज के दिन उनका विशेष रूप से श्राद्ध किया जाता है. साथ ही साथ इस तिथि दिवंगत हुए परिजनों का भी श्रद्धा के श्राद्ध करने की परंपरा है.
कब करें द्वादशी श्राद्ध (Pitra Paksha)
पितृपक्ष में कुतुप बेला में पितरों के लिए श्राद्ध के लिए सबसे उत्तम बताया गया है. पंचांग के अनुसार कुतुप मुहूर्त 11:30 से लेकर 12:30 बजे माना जाता है. ऐसे में पूज्य संतों या अपने दिवंगत परिजन का श्राद्ध इसी मुहूर्त में करें. वैसे कुतुप मुहूर्त दिन का आठवां बेला होता है. पाप का समन करने लिए इसे कुतुप कहा गया है.
द्वादशी श्राद्ध की विधि (Pitra Paksha)
द्वादशी तिथि के कुतुप मुहूर्त में किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर अपने पितरों और साधु-संतों का विधि-विधान श्राद्ध, तर्पण, दान आदि करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में जल, कुश और काला तिल का विशेष रूप से प्रयोग करें. दिवंगत साधु-संतों की आत्मा की तृप्ति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए विशेष रूप से भंडारा करना चाहिए. साधु-संतों को भोजन कराने से पहले कुत्ते, कौए, गाय आदि के लिए भोजन का अंश जरूर निकालें. साधु-संतों और ब्राह्मण को श्रद्धा और आदर के साथ भोजन करने के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देकर उनका आशीर्वाद अवश्य लें.