गरियाबंद. नवरात्र के अवसर पर आज हम एक नारी शक्ति की स्टोरी बता रहे, जिससे आप भी प्रेरणा ले सकते हैं. बेटा बीमार पड़ा तो दवा लाने पैसे नहीं थे. महीने में 20 दिन नमक चटनी के साथ परिवार आधी पेट भोजन करता था, लेकिन गरीबी से तंग आकर निधि हार नहीं मानी. बिहान से जुड़ी तो उनके जीवन में नया सवेरा आया. निधि अमलीपदर कलस्टर की प्रभारी बनी और 5 साल में 42 गांव में 900 महिला समूह खड़ा कर दिया, जहां उसके जैसे संघर्ष करने वाले 10747 परिवार जुड़े. माइका में बोझ बताई जा रही 327 परित्ग्यता, ससुराल के ताने से लाचार हो चुकी 700 विधवा और असहाय समझ कर अनदेखी कर दी गई 224 दिव्यांग महिला अब परिवार चलाने में सक्षम हो गई है.
राष्ट्रीय आजीविका मिशन के सफल क्रियान्वयन में जिले का अमलीपदर कलष्टर अग्रणी है. मैनपुर विकासखंड के 26 पंचायत को मिलाकर एक कलष्टर बनाया गया. इसके अधीन आने वाले 42 गांव में 900 महिला समूह बना हुआ है, जिसमें 10747 परिवार की महिलाएं शामिल हैं. आजीविका मिशन को जीवन का सहारा बनाने वाले 512 समूह लगातार ऋण योजना का लाभ लेकर अपने आर्थिक स्थिति सुधार रही है, जिनमें 700 विधवा, 327 परित्ग्यता, 224 दिव्यांग महिलाओं के अलावा 236 कमार और 282 भूंजिया जनजाति की महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इन सभी जरूरतमंद को निधि साहू इस मंच पर लेकर आई.विहान योजना में निधि पीआरपी (प्रोजेक्ट रिसोर्स पर्सन) की जवाबदारी निभा रही हैं. अपनी कार्य कुशलता के चलते जिले से लेकर दिल्ली तक 4 बार शासन प्रशासन से पुरस्कृत भी हो चुकी है. कभी तंग हालातों में मौत को गले तक लगाने की सोचने वाली लाचार व बेबस हो चुकी महिला अब निधि के दिखाए रास्ते पर चलकर खुशहाल परिवार में धन लक्ष्मी सी पूजी जा रही हैं. आपको सफल महिलाओं की कहानी बता रहे, क्यों इन्हें लक्ष्मी का दर्जा मिला.
बेटी के पायल बेच शुरू की नौकरी फिर महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी निधि
निधि 2009 में विवाह कर छुरा की मढेली आई ,पति बासुदेव उस वक्त नौकरी की तलाश कर रहे थे. परिवार में सास ससुर समेत 6 लोगों का गुजारा 2 एकड़ खेत पर निर्भर थे. 2010 में निधि बेटी की मां बन गई थी. तबियत बिगड़ी तो दवा के लिए पैसे की जुगत करना पड़ता था. तंगी से उबरने निधि ने बिहान ज्वाइन किया. गांव के ओम शांति महिला समूह में रहते हुए आंध्र से सक्रिय महिला समूह की ट्रेनिंग लेकर लौटी. ससुराल वालों को यह पसंद नहीं था, पर पति हर कदम पर साथ रहे. थोड़ा हालात में सुधार आ रहा था. आजीविका मिशन में निधि को पीआरपी की जवाबदारी मिली. गांव के किराना दुकान को सास ससुर को सौंप 2017 में अमलीपदर आ गए.10 माह का वेतन नहीं मिला तो निधि को बेटी के पायल को बेच घर तक चलाना पड़ा. दो साल तक महीनों के 20 दिन नमक चटनी से गुजारा करना पड़ा. तंगी व समूह बनाने निकले तो दूसरी महिलाओं के ताने से तंग आकर काम छोड़ कर चल दी थी. तब निधि की मां तिजिया बाई प्रेरणा बनी. निधि दोबारा काम पर लौटी, फिर हालातों से जूझ रही महिलाओं को अपने साथ बिहान योजना से जोड़ना शुरू किया. निधि ने बताया कि आज बेटी के लिए दोगुने वजन का पायल के अलावा पति और अपने लिए दोपहिया, कपड़े की दुकान के अलावा अपने दोनों बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ा रही है. खुद का पक्का मकान बनाने के अलावा शादी से पहले छूटी अधूरी पढ़ाई को भी पुरा कर लिया. काम के साथ-साथ निधि ने 12वीं व ग्रेजुयेशन की पढ़ाई पूरी की. निधि ने कहा की मेरी तकलीफ से शुरू हुई संघर्ष आज सैकड़ों महिलाओं के लिए काम आया.
निधि से प्रेरित होकर आजीविका मिशन से तकदीर बदलने वाले नारी शक्ति
दहेज के लिए त्याग दी गई, बेस्ट बीसी सखी अवॉर्ड से नवाजी गई : धुरुवागुड़ी की रहने वाली खेमेश्वरी तिवारी को ससुराल वालों ने तंग किया तो 2019 में त्याग कर माइके चली आई. सालभर तक माइके वाले के लिए बोझ बनी रही. निधि के संपर्क में आकर बिहान से जुड़ी. महिला समूह में रहकर फैंसी स्टोर के लिए लोन लिया, फिर बैंक सखी का काम भी संभाला. एक लैपटॉप खरीदी और समूह की उन बहनों तक पैसे घर पहुंचाने का काम किया, जो बैंक के चक्कर नहीं काट पाती. सबसे ज्यादा सेवा देने के चलते माहभर पहले कलेक्टर ने बेस्ट बीसी सीखी अवार्ड से नवाजा. आर्थिक रूप से कमजोर माइका परिवार के लिए भी आर्थिक मदद का जरिया बनी. आज माइका भी खुशहाल है. फलसपारा की भुंजिया महिला हेमकुमारी नेताम भी तलाक शुदा है. 2017 से बिहान में जुड़कर अपने इकलौते बेटे, बेवा मां व अपने भाई के साथ मिल खेती करती है.
पति की मौत के बाद असहाय हो गई थी दिव्यांग कला बाई, मौत को गले लगाने की सोच लिया था : सिहारलटी की रहने वाली कला बाई एक आंख और दाहिने हाथ से जन्मजात दिव्यांग है. दिव्यांग बड़ा बेटा समेत दो बेटों की परवरिश पति के मजदूरी के भरोसे थी. बिमारी से अचानक 2016 में पति की मौत के बाद आदिवासी महिला पर मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा. कला बाई ने कहा कि 4 साल तक ताने जिल्लत और तंगी के चलते परिवार समेत आत्महत्या करने का मन बना लिया था, फिर बिहान की दीदी निधि गांव आकर समूह बनाया. उसमे मैं भी सदस्य हूं, आजीविका मिशन के सहयोग से किराना दुकान का संचालन कर परिवार का गुजारा चला रहे हैं.
पति की मौत के बाद उठाया दो बच्चों के परवरिश का जिम्मा : गुरुजीभाठा की रहने वाली चंद्रिका नागेश की मौत 2019 में हुई. मजदूर परिवार में एक बेटा व बेटी के परवरिश का जिम्मा बेवा चंद्रिका पर आन पड़ी. 2020 में आजीविका मिशन से जुड़ नड्डा व मुरकू का धंधा करने लोन उठाया. अब तक दो बार लोन उठाकर समय पर चुका भी चुकी है. परिवार का ठीक से गुजारा हो जाता है. चंद्रिका ने कहा कि बेटे व बेटी के घर बसाने के लिए भी पैसा जोड़ना शुरू कर दिया है.
खुद रोजगार करने के साथ-साथ पति व परिवार को रोजगार दिलाया : धनोरा की झटकांती बाई अपने पति के साथ झोपड़ी में रहकर केवल मजदूरी के भरोसे जीवन यापन करते थे. बिहान से जुड़ने के बाद लघु वनोपज के लिए लोन लिया, अब पति के साथ मिलकर कारोबार जमा लिया, इसी तरह नयापारा की मंजू सिन्हा सिलाई व इलेक्ट्रिशियन, शितांजली यादव किराना दुकान, बीरीघाट के विज्येंतीन यादव सिलाई महीन, उसरीजोर की लक्ष्मीता नागेश मूर्रा फैक्ट्री, अमलीपदर की हेमलता ध्रुव टेंट हाउस, सरनाबहाल की चंचला प्रधान पशु व्यापार, गीता सूर्य वंशी किराना दुकान, कोकड़ीमाल की खिरो सोनवानी पशुपालन समेत 2961 महिलाएं ऐसे हैं, जो ग्रामीण स्तर पर आजीविका साधन का जरिया बनकर अपने परिवार के आर्थिक उन्नति में सहायक बनी है.
जानिए किन-किन कारोबार से जुड़ी हैं अमलीपदर कलस्टर की महिलाएं
2017 से शुरू किया गया प्रयास 2020 तक धरातल में दिखने लगा. इस कलस्टर में 262 महिलाएं किराना दुकान,13 कपड़ा दुकान, 36 फैंसी स्टोर, 7 स्टेशनरी दुकान, 468 महिलाएं बकरी पालन, 3 मछली पालन, 708 महिलाएं मुर्गा पालन, 10 सूअर पालन, 51 बांस बर्तन, 21 कटिंग चिकन, 29 चाय नाश्ता होटल, 325 महिलाएं सिलाई, 15 मिनी राइस मिल, 700 महिलाएं लाख उत्पादन, 5 गुड़ निर्माण, 10 पापड़ निर्माण, 272 बड़ी निर्माण, 11 अचार निर्माण, 10 मशाल उद्योग, 2 महिलाएं फल दुकान, 3 चूड़ी व्यवसाय व 29 महिलाएं सब्जी पालन के काम में लगी हैं. इसके अतरिक्त 32 विभिन्न कारोबार समूह के माध्यम से किया जा रहा है.