नई दिल्ली . सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) की एक याचिका को खारिज करते हुए बेहद अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकार और उसके संस्थानों को अपनी बड़ी संख्या में मुकदमेबाजी से न्यायपालिका को निष्क्रिय नहीं बनाना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बीएसएनएल के वकील से पूछा, “हमें सरकार और उसके संस्थानों से जितनी मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ता है…यह बहुत ज्यादा है। बीएसएनएल को 9 लाख रुपये के मध्यस्थ फैसले में सुप्रीम कोर्ट तक क्यों आना चाहिए?”
पीठ में मुख्य न्यायधीश के अलावा, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने यह भी बताया कि सिंगल-जज वाली बेंच के साथ-साथ मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पहले ही दूसरे पक्ष (राइट्स लिमिटेड) के समर्थन में मध्यस्थ राशि देने की पुष्टि कर दी है। यह राशि कंसल्टेंसी सर्विसेज के एक समझौते के संबंध में थी जो बीएसएनएल ने राइट्स के साथ किया था। बीएसएनएल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि मामला सिर्फ 9 लाख रुपये का नहीं है, बल्कि केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय के तहत केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम को लगभग 100 ऐसे सलाहकारों को पैसा देना होगा।
वकील ने कहा, “असल में यह लगभग 9 करोड़ रुपये है…पैसा तो पैसा है।” सीजेआई ने बीएसएनएल की याचिका को खारिज करते हुए जवाब दिया, “और अदालतें तो अदालतें हैं…आपको संस्थानों को निष्क्रिय क्यों बनाना चाहिए? ऐसे हर मामले पर अदालत को हर चरण में कम से कम 15-20 मिनट खर्च करने होंगे। और आप अपील पर अपील दायर करते रहते हैं। कृपया ऐसी याचिकाएं दाखिल करना बंद करें।”