मस्तक पर बिंदी और मुख में हिंदी यह मेरे भारत की पहचान है-पंडित प्रदीप मिश्रा

जो माता-पिता गुरु और घर के बड़ों की दृष्टि में रहता है, उनकी जिंदगी में सृष्टि अपने आप बनती चली जाती है*

तिल्दा-नेवरा। नेवरा हाई स्कूल दशहरा मैदान में श्री कावड़ महापुराण कथा के चौथे दिन शुक्रवार को मूसलाधार बारिश होने के बाद भी कथा का रसपान करने इतने शिवभक्त पहुंचे की पंडाल ही छोटा पड़ गया लोग पंडाल के बाहर छतरियां लेकर 3 घंटे तक पंडित प्रदीप मिश्रा के मुख से कथा का रसपान करते रहे।कथा वाचक प्रदीप मिश्रा ने कहा कि कथा का चौथा दिन और पानी गिरने का तीसरा दिन है। लगातार दिन-रात एक जैसा पानी गिर रहा है। कांवड़ शिव महापुराण की कथा है ,भगवान जैसा नाम कथा का देता है, वैसी पूरी लीला भी महादेव करता है। श्रोता अपने-अपने घरों से आते हैं ,आपको महसूस होना चाहिए कावड़ कथा में जा रहे हैं। पंडाल में पहुंचना कीचड़ में पानी में हवा में यहां पहुंचकर कथा का लाभ लेना एक अलग ही आनंद है।महाराज ने चौथे दिन कि कथा का रसपान करने पहुंचे श्रोताओं से कहा कि आप बड़े ही भाग्यशाली हो। पूर्व समय में आप लोगों ने जरूर गौ- माता का दान किया होगा। ब्राह्मणों को भोजन कराया होगा.और तीर्थों का स्नान किया होगा। इसीलिए देवोंदेव भगवान शंकर कि कृपा से मानुष चोला प्रदान कर शिव महापुराण कथा सुनने का मौका दिया है । उन्होंने कहा कि आज जो हम पुण्य कर रहे हैं इनका फल हमें बाद में जरूर प्राप्त होगा। पर हमने जो पुण्य पूर्व में किया उसका फल हमको आज प्राप्त हो रहा है। यह पुण्य की प्रबलता है।उन्होंने कहा जिस व्यक्ति का मकान बस स्टैंड पर होता है या फिर थाने के सामने अथवा अन्य किसी चौक चौराहे और स्टेशन के सामने होता है,तो वह बड़ी अकड़ के साथ कहता है, मेरा मकान बस स्टैंड. थाना के सामने है।आप ट्रेन या बस से उतरेंगे तो बहुत नजदीक है, हमारे यहां आ जाना। बस स्टैंड पर मकान है उसको गर्मी है. रेलवे स्टेशन पर मकान है उसको गर्मी है. अस्पताल के सामने मकान है उसको गर्मी है। ऐसी गर्मी जितनी उनको है. इतनी गर्मी तुम श्रोताओं को शिव भक्तों को होनी चाहिए. कि मेरी प्रबल पहचान है मेरी पहचान मेरे महादेव से है, मैं महादेव के मंदिर जाती हूं जल चढ़ाता हूं .बेलपत्र चढ़ाती हूं .भगवान शंकर की आराधना करता हूं ,शंकर भगवान का गुणगान करता हूं, यह मेरी पहचान है।श्री मिश्रा ने कहा मैं कथा में पहले भी कह चुका हूं कि मेरे भारत की भी एक अलग पहचान है, उसकी जो जो मूल पहचान है, वो दो चीजों से की जाती है, एक मस्तक पर बिंदीÓ और एक मुख में हिंदी यह मेरे भारत की पहचान है।

मस्तक पर बिंदी लगी हुई है और मुख पर हिंदी के शब्द हैं आप अच्छे से उच्चारण कर रहे हैं. प्रणाम कर रहे हो. नमन कर रहे हो. आप आदर के संबोधन से आदर दे रहे हो. यह आपकी पहचान होती है। यही भारत देश की पहचान है।

इसी तरह शिव कथा कह रही है भगवान शंकर संवाद कह रहा है शिव महापुराण की कथा कह रही है आप अगर भगवान शिव की कथा में जाते हो। भगवान शंकर पर एक लोटा जल चढ़ाते हो शिवजी को एक बेलपत्र चढ़ाते हो रोज शंकर भगवान का गुणगान करते हो. शिव भक्ति में रमे रहते हो.. तो तुम अकड़ कर कह सकते हो की दुनिया की पहचान किसी से हो लेकिन मेरी पहचान मेरे महाकाल मेरे शिव औघड़ दानी से है.. मेरी पहचान मेरे शंभू से है ..अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का. और काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का।जो शिव की आराधना में लीन रहता है जो शंकर भगवान की भक्ति में लीन रहता है. वो क्या साधारण हो सकता है..? क्या उसकी भक्ति साधारण हो सकती है..।वो भक्ति साधारण हो ही नहीं सकती।

कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने माता-पिता गुरु की महिमा का बड़े ही सुंदर ढंग से उल्लेख करते हुए कहा कि माता पिता गुरु और घर के बड़े इनकी जायजाद मिले ना मिले..। पर शिव महापुराण कथा कहती है कि माता पिता गुरु और घर के बड़े इनसे हमको कुछ प्राप्त हो या ना हो. पर इतना जरूर याद रखो कि इन की दृष्टि में हम रहे। जो माता-पिता और गुरु और घर के बड़ों की दृष्टि में रहता है, उसकी जिंदगी में सृष्टि अपने आप बनती चली जाती है और उनका विकास अपने आप होता चला जाता है। हम अपने माता की दृष्टि में बने रहें पिता की दृष्टि में बने रहे हम अपने गुरु की दृष्टि में बने रहें गुरु आपको धन दे ना दे.. पर गुरु आपको दृष्टि में रखेगा गुरु की मात्र दृष्टि ही आप पर पड़ गई तो समझ लो आपकी जिंदगी यूं ही संवर गई।

महाराज जी ने कथा के बीच कुछ पत्रों का भी उल्लेख किया जिसमें एक पत्र छत्तीसगढ़ जांजगीर चांपा जिले के अकलतरा से 3 वर्षीय एक छोटी सी बेटी का पत्र आया था ..जिसमें उस बेटी ने पथरा में बेटी की मां ने बेटी के आंख में कैंसर होने का उल्लेख किया था। उसने लिखा है उनकी आंख में कैंसर हो गया है उसकी मां ने बताया कि हमने रायपुर बिलासपुर के डॉक्टर को दिखाया। पर डॉक्टर ने कह दिया यह जो कैंसर है इसमें बचने के चांस नहीं है, क्योंकि कैंसर आंख के माध्यम से पूरे शरीर में प्रवेश कर गया है..। तब किसी एक पड़ोसी कहने पर बच्ची को हैदराबाद मैं ले जाकर एक अच्छे डॉक्टर को दिखाया.. वहां भी डॉक्टर ने कहा इस बच्ची को बचने की कोई उम्मीद नहीं है। डॉक्टर ने कहा कि वो कर कर देख लो कुछ राहत मिल जाए लेकिन बच्ची बच्चे की नहीं..। तब हम उसको वापस घर ले आए .तब पड़ोसन ने कहा सभी डॉक्टर को दिखा लिए हो अब एक काम करते हैं .इस बच्ची को रोज शिवजी के मंदिर में ले चलते हैं भोलेनाथ जी पर जल चढ़वाएंगे. और जल इनकी आंखों पर लगा देंगे.उसके बाद शिवजी के मंदिर में जाना चालू किया। पशुपतिनाथ का व्रत शुरू किया. उसके एक महीने बाद मासूम नन्ही बेटी को हैदराबाद ले गए डॉक्टर से कहा कि डॉक्टर साहब इसका कीमो कर दें. आप चाहे तो इसका ऑपरेशन भी कर सकते हैं. हमने इस बेटी को भोलेनाथ को दे दीया हैं। अब यह बेटी शिवजी की है.बचेगी ना बचेगी उसके हाथ में है। किमो करने के पहले डॉक्टर ने आंखों की जांच की बाबा की कृपा से ऐसी करुणा हुई की मेरी बेटी की आंख का कैंसर ठीक होने को आ गया और आंखों की रोशनी लौट कर आ गई. बाबा को यहां पर नमन करने आई हूं । अब तो उसकी रिपोर्ट भी नॉर्मल आ गई है. इसके बाद प्रदीप मिश्रा जी ने उस बेटी को व्यास पीठ पर लाने को कहा,तब बेटी को मां गोदी में लेकर व्यास गद्दी पर ले आई और बेटी को पंडित की गोद में दे दिया। बेटी को गोद में लेते ही पंडित जी के आंखों में आंसू आ गए और पूरे पंडाल मैं बैठे लोगों की आंखों से आंसु बहने लगी।महाराज जी ने कहा कि शिव पर अगर हमने भरोसा रखा है तो दानी शिवजी उनके भरोसे को टूटने नहीं देते हैं.. नौकरी के लिए लाखों लोग फार्म भरते हैं. लेकिन नौकरी मात्र 10- 20 लोगों को नौकरी मिलती है। करोड़ों की भीड़ से शिव महापुराण की कथा में वही पहुंचता है जिस पर भगवान शंकर कृपा करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *